हजारों साल से चला आ रहा कुंभ नागाओं से कभी खाली नहीं रहा। उनके पास कभी कोई शिकायत नहीं रही। उनमें कभी कोई डर नहीं रहा, क्योंकि धर्म उनके अंदर उतर चुका है। धर्म जिसके अंदर होगा वह न तो डरेगा और न ही वह कमजोर होगा।
यही बात हमें भी माननी चाहिए कि जब धर्म हमारे दिलों में होगा तो भला संसार की कौन सी ऐसी शक्ति है जो उसे हमारे दिलों से निकाल ले जाए? वह कौन है जो हथियार के जोर पर हमारा दिल जीत ले जाए? यह जान लीजिए कि धर्म कभी खतरे में रहा ही नहीं।
जो खतरे में है, वह धर्म नहीं बल्कि अधर्म है। धर्म और अधर्म के बीच एक महीन रेखा होती है जिसे नहीं जाना तो पता नहीं कब आप अधर्म के मैदान में खड़े हो जाएं। धर्म पूजा पद्धति, कर्मकांड या दूसरी चीजों से नहीं चलता और न ही बढ़ता है। धर्म तो चरित्र से चलता है। उसके बढ़ने से बढ़ता है और घटने से घटता है। जब कोई कहे कि इकट्ठे हो जाओ, धर्म खतरे में है तो फौरन रुक जाओ।
कहने वाले का चरित्र देखो और अपने अंदर मौजूद धर्म देखो। जब तक तुम्हारे अंदर धर्म जिंदा है उसे कोई खतरा नहीं है। जब तक तुम धर्म के मर्म को समझ रहे हो तब तक यह हरगिज खतरे में नहीं है। जैसे ही तुम किसी दूसरे के कहने पर अपने दिल के अंदर बिना झांके हाथ उठाकर कदम बढ़ाते हो वैसे ही धर्म खतरे में आ जाता है। यह भी सच मान लो, तब भी केवल तुम्हारे हृदय का धर्म खतरे में आता है, सबका नहीं। अपने दिल में धर्म लाओ दूसरे के दिल में यह लाने निकलोगे तो गलती कर जाओगे।
June 20, 2024June 20, 2024
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